हम क्या सुनाते किसी को अपने दर्द की दास्ताँ
यहाँ तो पहले ही हर कोई अपने गम से ग़मगीन है ,
फिजूल है कोई ख्वाब बोना इन आँखों में
अब ये सिर्फ एक खुश्क बंजर ज़मीन हैं
क्या आस लगते मदद की किसी से
की भीड़ में खड़ा हर शख्स तमाशबीन है
भूल कर बैठी हूँ सारे जहाँ को तन्हाई में
अब तेरी यादें ही मेरी हमनशीं हैं
इल्म है हमें अपने अधूरेपन का लेकिन फिर भी
कभी तो पूरी होगी ये दास्ताँ, हम मुतमईन हैं
-सोमाली
यहाँ तो पहले ही हर कोई अपने गम से ग़मगीन है ,
फिजूल है कोई ख्वाब बोना इन आँखों में
अब ये सिर्फ एक खुश्क बंजर ज़मीन हैं
क्या आस लगते मदद की किसी से
की भीड़ में खड़ा हर शख्स तमाशबीन है
भूल कर बैठी हूँ सारे जहाँ को तन्हाई में
अब तेरी यादें ही मेरी हमनशीं हैं
इल्म है हमें अपने अधूरेपन का लेकिन फिर भी
कभी तो पूरी होगी ये दास्ताँ, हम मुतमईन हैं
-सोमाली