Sunday 2 October 2011

टुकड़े- टुकड़े में बंटी मैं,

टुकड़े- टुकड़े में यूँ बंटी मैं,की मिलता ही नहीं अब कोई भी सिरा
खोजती फिरूँ कब तक राहों में, की कहाँ -कहाँ कतरा मेरे अस्तित्व का गिरा ,

जब भी बैठी जोड़ने टुकडो को, हर बार  हुआ यूँ ही
ढूँढा एक टुकड़ा तो फिर  न अगला सिरा मिला,

छलनी करती रही हर बार  जाने कितनी वेहशी निगाहें जिस्मो- जान मेरा
न जाने कितनी बार मुझे उन दहशत के सायों ने आ घेरा

जो भी मिले यहाँ बनकर हिमायती, सब वो जिस्म के प्यासे थे
दिए थे जो गम के आलम में, झूठे सब वो दिलासे थे

कब तक सहती वार पर वार यूँ मैं ,की बिखरना ही था यूँ  एक दिन
बिखरी इतने टुकडो में की फिर न कभी सिरे से सिरा मिला............

कोशिश भी जब लाख की जोड़ने की तो
बस इक उथला सा चेहरा मिला ..........

-सोमाली

Monday 26 September 2011

अनचाही सी चाहत

                                                                                                         
दिल में एक अजब सी हलचल है
न जाने कैसा ये एहसास है
तू दूर होकर भी लगता है जैसे पास है
कहना बहुत कुछ चाहा था तुझसे
पर  एहसासों को लफ्जो में न ढाल सकी
तुने मुझे अपनी दुनिया से निकल दिया
पर मैं तुझे दिल से भी न निकाल सकी

तुझे तो नींद आती होगी चैन की
पर मैं इक रात भी चैन की न गुजार  सकी
महीनो बीते,वक़्त चलता रहा
पर मैं आज भी वहीँ खड़ी हूँ
एक लम्हा भी तेरे बिना न गुजार  सकी

तेरे लिए में कोई बीता लम्हा हूँ
या शायद कोई अफसाना
पर मेरे लिए तू वो धुरी है
जहाँ से शुरू होता है मेरी ज़िन्दगी का हर फ़साना

तेरी यादों से सुबह शुरू होती है
तेरी यादों में ही शामें ढल जाती हैं
स्याह काली रातो में भी तेरी यादें
बेसबब मुझको रुलाती हैं

भूल जाउंगी तुम्हे हर रोज़ ये फैसला करती हूँ
न बहेगा अब आंसू का एक कतरा भी अब तेरे लिए
न जाने कितनी बार ये हौसला करती हूँ

हर बार फिर ताश के पत्तो की तरह  बिखर जाती हूँ
फिर तेरी ही यादों की परछाईओं  से घिर जाती हूँ
मौत से हारा  करती है जिंदगी अक्सर
पर में अपनी ही जिंदगी से मात पाती  हूँ




                                                                                                                              

Thursday 25 August 2011

कश्मकश रिश्तो की


कैसे रिश्ते कैसे नाते ,कौन यहाँ साथ निभाता है,
तुम कहते हो यह विश्वास है ,मैं कहती हूँ बस एक झूठा नाता है,

आस लगोगे अगर किसी से हाथ निराशा ही आएगी
विश्वास करने की किसी पर तुम्हारी खता कभी न बख्शी जाएगी

तुम प्यार करो विश्वास करो ,या की रिश्तो पर वारे जाओ
रिश्तो की खातिर तुम चाहे खुद की बलि चढाओ

विश्वास तुम्हारा टूटेगा और जिम्मेदार भी तुम्ही ठहराए जाओगे
अनंत सवालो के कटघरे में तुम खुद को खड़ा पाओगे

जवाब तो होंगे मगर फिर भी तुम मौन रह जाओगे
ठेस लगे हुए दिल के जज्बातों को बयां करने को शब्द कहाँ से लाओगे,

प्रत्यारोप तुम लगाओ तो भी दिल तुम्हारा ही दुखेगा
फिर ये आरोप- प्रत्यारोप का दौर न जाने कहाँ रुकेगा

निर्दोष होकर भी तुम उन इल्जामो को स्वीकार लोगे
तुम्हे लगेगा शायद इससे तुम इस बिखेरते रिश्ते को संवार लोगे

अंत तक रिश्तो को बचाने  की कोशिश में तुम झुकते जाओगे
और एक दिन तुम खुद टूट कर बिखर जाओगे

रिश्तो की टूटन का ये दौर बेइन्तेहाँ दर्द दे जायेगा
सब कुछ भूलने पर भी ये दर्द सदा तड्पाएगा

दिल में दर्द और आँखों में नमी लिए दुनिया को झूठी मुस्कान दिखाओगे
विश्वास पर भी अविश्वास करोगे कभी किसी को दिल का दर्द न दिखा पाओगे

ये रिश्ते- नाते कुछ नहीं बस मतलब का मेल हैं ,
विश्वास जज्बात ये सब बस खेल हैं

इस खेल में सदा सबने मात ही पायी है
मनो न मनो बस यही रिश्तो की सच्चाई है

जितनी जल्दी सीखोगे नियम इस खेल के उतनी जल्दी संभल जाओगे,
वरना रिश्तों के फेर में उलझ कर रह जाओगे,

जज्बाती इंसान हमेशा इस खेल में हार जाता है,
कल मेरी ही तरेह तुम भी कहोगे की बस एक झूठा नाता है


                    -सोमाली   
  







 

Saturday 6 August 2011

अनखिला अधूरापन

हम क्या सुनाते किसी को अपने दर्द की दास्ताँ
यहाँ तो पहले ही हर कोई अपने गम से ग़मगीन है ,

फिजूल है कोई
ख्वाब बोना इन आँखों में
अब ये सिर्फ एक खुश्क बंजर ज़मीन हैं

क्या आस लगते मदद की किसी से
की भीड़ में खड़ा हर शख्स तमाशबीन है

भूल कर बैठी हूँ सारे जहाँ को तन्हाई में
अब तेरी यादें ही मेरी हमनशीं हैं

इल्म है हमें अपने अधूरेपन का लेकिन फिर भी
कभी तो पूरी होगी ये दास्ताँ, हम मुतमईन हैं

-सोमाली  

Monday 25 July 2011

अधूरा सफ़र


                 
                       रास्ते बदलते बदलते मैंने मंजिल भी अपनी खो दी
                       अब याद बहुत वो छूटा हुआ सफ़र आता है

                       कभी करके देखो वफ़ा तुम बेवफाई के बदले
                       फिर देखो इश्क में लुटने  का मजा किस कदर आता है

                       क्यूँ है हैवानियत सवार इसके सर पे
                        की शक्ल से तो ये भी इंसान नजर आता है

                       शायद सीख जाये दिल तोड़ने का हुनर हम भी तेरे साथ रहकर
                        संगत का कुछ न कुछ तो जरुर असर आता है
  -सोमाली  



Saturday 2 July 2011

हाँ सच है मैं बदल गयी हूँ.......



     1.
      न मुझे अब कुछ कहना है,न  ही कुछ पूछना है 
      तुम मेरे सवालों से वाकिफ हो ,और मैं तुम्हारे जवाबों से 
      मगर फिर भी क्यूँ ये सिलसिला टूटता नहीं 
      हर बार तुझसे मुखातिब हो जाती हूँ फिर वही सवाल लिए.... 

     2.
      क्या ढूंढ  ने की कोशिश कर रहे हो इन आँखों में झांक कर ,
      वो सपने जो कभी तुम्हारे साथ देखे थे ,
      या वो चमक जो तुम्हे देखते ही झिलमिलाने लगती थी इन  आँखों में.......
      बेकार न वक़्त जाया करो,कुछ भी नहीं मिलेगा,
      वो सब आंसुओं  में बह गया,
      अब तो बस  उदासी और सूनापन बसते हैं  इन निगाहों में.......   

      3.
       मत देखो मुझे इतने अचरज से,हाँ सच है मैं बदल गयी हूँ 
       चहकती -खुशमिजाज थी कभी ,अब मैं तन्हाई ओर आक्रोश में ढल गयी हूँ 
       तुम क्यूँ इतने हैरान हो देखकर मुझे बदला हुआ?
       तुमने ही तो चाहा था की मैं बदल जाऊं ,तो देखो मैं बदल गयी हूँ....... 

        4..
       अब कोई भी भावना मुझे स्पर्श नहीं करती ,
       अब तेरे किसी भी दर्द से मैं विचलित नहीं होती, 
       अब नहीं भिगोते तेरे अश्क मेरे मनं को ,
       अब तेरी हँसी से मेरी आत्मा आह्लादित नहीं होती ,
       अब जब मैं पत्थर बन चुकी, तो क्यूँ तेरी आँखें, 
       निहारती हैं मुझे इस उम्मीद के साथ की मैं पिघल जाऊँगी,
        तुम्ही तो कहा करते  थे, इतनी भावुकता अच्छी नहीं होती...........
                                                         
                                                             -सोमाली 


                                              

Sunday 19 June 2011

ख़ामोशी सिर्फ ख़ामोशी नहीं होती

 
 
 

 
           लब जब खामोश होते हैं,तब दिल में खयालो का इक तूफ़ान उठा होता है,
           खामोश बैठा शख्स,मनं में उलझते खयालो को सुलझाने में जुटा होता है ,

           मौन है वो लेकिन अंतर्मन विचलित होता है,
           ख़ामोशी को ओढ़े वो दिल ही दिल में चिंतित होता है,

           खामोश रहकर न जाने कितनी बातें वो खुद से कर जाता है,
           खुद से हँसता,रोता कभी खुद शंशय से भर जाता है, 

           खामोश वो कुछ पल के लिए दुनिया से दूर निकल जाता है
           गहरे कहीं अपने ही मनं में उतर जाता है ,

           चलते हुए मनं के गलियारों में न जाने कितने विचारो से टकराता है,
           कहीं यादों में उतरता है तो कहीं खुद के सवालो से कतराता है,

          ख़ामोशी से यादों में फिर एक बार पिछली जिंदगी जी जाता है
          और कभी भविष्य की चिंता में जलता है

           खामोश लम्हों में घुलते हुए बुरी यादो में कुछ गलत फैसले ले लेता है
          और कभी खामोश लम्हों में लिए फैसलों से दुनिया जीत लेता है

          ख़ामोशी सिर्फ ख़ामोशी नहीं होती ख़ामोशी का भी गहन अर्थ होता है
          जब खामोश हो इंसान दुनिया के सामने तब वो सिर्फ खुद से रु-ब रु होता है
                                                            - सोमाली      

Sunday 29 May 2011

सवाल ???


               न जाने कहाँ से जन्म लेते इतने सवाल
               न जाने क्यूँ अंतस में उठते हैं इतने सवाल
               वक़्त पैदा करता है या हालात जन्म देते  हैं सवालो को?

              सवाल जो अनसुलझे रह जाते हैं
              सवाल जो अपने आपमें कितना कुछ कह जाते हैं
              सवाल जिनके कोई जवाब नहीं होते
              सवाल जो  कचोटते रहते हैं मनं को जागते -सोते

             सवाल जिनके जवाब एक नया सवाल खड़ा कर देते हैं
             सवाल जो एक छोटी सी बात को बड़ा कर देते हैं
             सवाल जो कभी झूठ पर से पर्दा हटा देते हैं
             सवाल जो अस्तित्व पर भी प्रश्नचिन्ह लगा देते हैं

             सवाल जिनका जवाब जानकर भी हम किसी से जवाब की अपेक्षा करते हैं
             सवाल जिनके जवाब अपने अनुसार देकर हम खुद को संतुष्ट करने की कोशिश करते हैं
             सवाल जो बस उठ जाते हैं कभी मजहब,कभी नाम पर ,कभी चरित्र तो कभी ईमान पर

              सवाल जो असीमित हैं,जिनका दायरा कभी ख़त्म ही नहीं होता
              सवाल जो प्रश्नचिन्ह लगा देते हैं हर विश्वास के आगे

सवाल जो सबसे बड़ा है वो ये की कहाँ से आते हैं ये सवाल और क्यूँ  इन सवालो का कोई अंत नहीं होता ???????
                                                                                    - सोमाली  



Wednesday 25 May 2011

आईना


       ऐ आईने तू कैसे सच दिखलाता है,
       मौन रहकर भी कैसे सब कुछ कह जाता है,
       मैं कई मुखोटे पहनकर मिलती हूँ दुनिया से,
       कोई मुझे पहचान नहीं पाता है,
       बस एक तू ही है जो मेरे अंतर्मन में ले जाकर मुझे,मेरे सच से मिलवाता है 
       जब मनं में कई बातें लिए,खोजती हूँ एक सच्चा साथी मनं  की बात बाँटने को
       पर कोई समझ नहीं पाता है,तब हारकर तेरे सामने आती हूँ ,
       तू ही मेरी तन्हाई का साथी,मेरा हमराज़ बन जाता है, 
       बड़ी शिद्दत से आँखों के कोरो में छिपाए कुछ कतरे,ढुलक कर गालों को भिगोते हैं
       तब आंसू  या पानी में फर्क कर उनमे छिपा मर्म पहचान पाता  है,
       जो बातें खुद से भी छुपाती हूँ,वो सब तुझसे कह जाती हूँ,
       तुझसे  की हर बात ,बस रहती है हमारे दरमियाँ कोई और न जान पाता  है
       तू एक बेजान चीज़  होकर भी,सच्चे साथी सा साथ निभाता है ,
       सच्चाई दिखाने  की ,चकनाचूर होकर कभी सज़ा भी तू पाता है ,
       पर फिर भी तेरे हर टुकड़े में सच का प्रतिबिम्ब ही नज़र आता है ,
        ऐ आइने तू कैसे सच दिखलाता है
                                                                         सोमाली
 

Sunday 8 May 2011

"माँ " तेरी बहुत याद आती है....

     












                जन्म देकर मुझे ,मेरा जीवन संवारा 
                सींच कर अपने संस्कारो से मेरा अस्तित्व निखारा
                जब भी गिरने को हुई ,तूने ही संभाला देकर सहारा
                जब भी कठिन हालातो की कड़ी धूप में  मैं हार  कर बैठी ,
                तुने  ही अपने आँचल  का साया कर फिर से हौंसला दिलाया,
                जब भी घिरी मैं दुःख के अंधेरों में,तेरे  प्यार की रौशनी ने ही रास्ता दिखाया ,
                जब जब रोई मैं ,तेरे आँचल को भी मैंने नम पाया ,
                तूने ही तो निश्चल ,निस्वार्थ प्यार करना सिखाया ,
                अब तुझसे दूर हूँ ,पर हर दुःख में तू ही याद आती है ,
                सो जाती हूँ जब तुझे याद करते करते ,
                तब सपनो में आकर प्यार से मेरे बालों को सहलाती है ,
                आज मैं जो हूँ तुने ही तो बनाया है
                दूर हूँ तुझसे पर फिर भी तेरा आशीष मेरा हमसाया है
                जब भी घिरती हूँ दुविधा से,तेरी सीख आज भी मुझे रहा दिखाती है ,
                माँ कभी कहा नहीं तुझसे ,पर सच तेरी बहुत याद आती है........
                                                                    
                                                                                                  -सोमाली

 
      

Thursday 5 May 2011

अजनबी बन जाना............

  






                          कितना मुश्किल होता है,
                          अपनों के लिए अजनबी बन जाना......,
                          उनकी तकलीफ देखकर भी,
                          परायों की तरह मुँह मोड़ जाना,
                          अपनी बेरुखी से दिल में उठी कसक को दबाना,
                          मुँह फेरकर अपने आंसू छुपाना,
                          उन्हें देखकर हुई ख़ुशी या उनकी तकलीफ से,
                          चेहरे पे आई शिकन छुपाकर,
                          हमें फ़िक्र नहीं उनकी ये जाताना, 

                          दिल में हिलोरे मारते प्यार के तूफ़ान को दबाकर, 
                          झूठी नफरत दिखाना, 
                          पर हालात मजबूर कर देते हैं इतना, 
                          की जरुरी हो जाता है अपनों की खुशियों के खातिर ही, 
                          अपनों के लिए अजनबी बन जाना........
                                                                 
                                                             -सोमाली 

Thursday 28 April 2011

उम्मीद






                               
                             जानती हूँ में ये भावनाएं,ये प्यार तेरे लिए कुछ भी नहीं
                             फिर भी हर बार तेरे सामने मन खोलकर रख देती हूँ
                             तू हर बार यूँ ही  हँसी में  टाल कर चल देता हैं अपने रास्ते
                             और मजाक बन कर रह जाती हैं सारी भावनाएं,उमीदें और सपने
                             टूट कर बिखर  जाता है मनं के अन्दर कुछ अनगिनत टुकडो में
                             और मैं आँखों में आंसू लिए समेटने  लगती हूँ इन टुकडो को
                             इस उम्मीद के सहारे की एक दिन तो  आएगा
                             जब तुझे इन टुकडो में मेरी टूटन का भी दर्द नजर आएगा
                             और तू  अपने हाथों से जोड़कर इन टुकडो को
                             भर देगा अपने बेइन्तेहाँ  प्यार से एक -एक दरार को.......
                                                                                        
                                                                                               -सोमाली

                                                                     

Wednesday 27 April 2011

ये रात जो आई है




 ये रात जो आई है, साथ अपने एक अजब सा एहसास लायी है  
 एक ख़याल बार बार दिल से टकराकर,धड़कने बड़ा रहा  है,
 क्यूँ है दिल मेरा इतना बेचैन ,क्यूँ  खो रही हूँ मैं अनजाने ख्यालों में
 न जाने  किस की तलाश है,  ढूंढ़ रही हूँ शायद अपना कोई इन अंजानो  मैं,
 पल पल गहराती इस रात में हर पल की ये बेचैनी,गहराता ये सन्नाटा और आरज़ू ये अनजानी
 न जाने क्यूँ हो गयी इतनी बेबस और मजबूर की आंसुओं की ये बूँदें भी आँखों के दाएरे तोड़ आई  है
 आज की इस रात में न जाने कैसी ये तन्हाई है,जैसे रूठी मुझसे मेरी ही परछाई है,

 ये रात जो आई, है साथ अपने एक अजब सा एहसास लायी है
                                                                                                       -सोमाली  




Friday 22 April 2011

वक़्त



 
                   
                  इतने वक़्त इंतज़ार किया जिस वक़्त के लिए

                  वो वक़्त आया भी और वक़्त से पहले चला गया

                  हमने भी उस वक़्त जो करना था उसमें इतना वक़्त लगा दिया

                  की वक़्त ही न बचा फिर किसी के लिए

                  जब वो वक़्त हाथ से निकल गया उस वक़्त हमें ख्याल आया की 

                  जब वक़्त दिया था वक़्त ने हमें उस वक़्त हमारे पास वक़्त नहीं था

                  अब जब वक़्त मिला हमें, तो वक़्त के पास हमारे लिए वक़्त नहीं  

                                        -सोमाली