चल अकेला ही तू
क्यों किसी के साथ की राह तकता है,
ये दुनिया मतलब की है,
हर कोई बस जरुरत तक ही साथ चलता है ,
हर मोड़ पर यहाँ नए हमसफ़र मिलेंगे,
हमदर्द न बना किसी को यहाँ ,
के दर्द बहुत होगा जब वो रास्ते बदलता है ,
मत बैठ तू किसी रिश्ते की आस में
कट जाती है जिंदगी युही
एक अदद साथ की तलाश में,
जाने दे जो छोड़ते हैं बीच राह में साथ तेरा
एहमियत जब समझी नहीं किसी ने
फिर तू क्यों रिश्तों की दुहाई देकर मचलता है
कर पत्थर खुद को तू की
तूफानों में भी डिगे नहीं …
चकनाचूर हो जायेगा
क्यों दिल शीशे का लेकर चलता है,
बहुत लम्बा है सफर अभी
कांटे भी चुभेंगे,सेहरे भी आएंगे
कई रास्तों पर पग तेरे फिसल भी जायेंगे
पर फिर ज़िन्दगी बटोर कर उठ खड़ा होना
जितनी बार तू फिसलता है ,
चलता चल युहीं तू अपनी राहों पर
मिल ही जाएगी मंजिल तेरी
जो तेरी जिंदगी की सफलता है ,
फिर देखना खड़े होकर वहां तू
कभी किया ही नही मोल तेरा जिन्होंने
कैसे उनका का रुख तेरे लिए बदलता है
क्यूंकि है हर जज्बात झूठ यहाँ
बस सफलता का ही सिक्का चलता है .......
… सोमाली
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (28.11.2014) को "लड़ रहे यारो" (चर्चा अंक-1811)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।
ReplyDeleteमेरी रचना को महत्व देने हेतु बहुत बहुत आभार सर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteवास्तविकता जीवन की
ReplyDeleteकंप्यूटर मोबाइल और इंटरनेट से संबंधित ढेर सारी जानकारी अपनी मातृभाषा हिंदी में पढ़ने के लिए हमारे ब्लॉग aaiyesikhe.com पर पधारे
ReplyDeleteआपने काफी बढ़िया पोस्ट लिखी है आप एक बार हमारे ब्लॉग पर भी विजिट करें online hindi book
ReplyDeleteapane bahut hi achhi post likhi hai thanks
ReplyDeleteZee Talwara
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