Wednesday 27 May 2020


कुछ नही करना अक्सर 
कुछ करने से आसान होता है

हाँ पर मुश्किल होता है कुछ न करते हुए भी
ये दिखाना की कुछ किया गया है

लाखो की तादात में सड़कों पर रेंगते
कुछ इंसानी डील डॉल वाली आकृतियों को
नकारना शायद बहुत ही  आसान होता है
या  शायद मुश्किल को आसान बना लिया जाता है

राह भटकती  रेलें शायद युहीं भटक जाती है आसानी से
या शायद बड़ी मुश्किलों से  भटकाई जाती है
आसान बनाने को कुछ गैरजरूरी भीड़ बढ़ाते
प्राणियों के मुश्किल अवसान को

चिरनिंद्रा में सोई माँ को जगाते बच्चे का दृश्य
मुश्किल है उतारना निगाहों से
पर शायद  आसान होता होगा इस तरह के दृश्य
आम हो जाने देना

बहुत मुश्किल रहा होगा बीमार  बाप को लेकर
एक बेटी का कई सौ किलोमीटर का सफर
पर बहुत आसान रहा उसकी मजबूरी को
उपलब्धि का जामा पहनना

बहुत आसान रहा होगा मजदूरों के कटकर मरने पर
सवाल उठाना और गलती बताना पर
बहुत मुश्किल रहा होगा उन मजदूरों का
 उस ट्रैक तक आना

बहुत मुश्किल रहा होगा एक प्रसूता का
नवजात के साथ 150 किलोमीटर चलना या
छाले पढ़ते पैरों के बावजूद न रुक पाना
चप्पल टूटने पर बोतल की चप्पल बनाना
बहुत मुश्किल रहा होगा
भूखे बच्चे को सूटकेस पर सुलाकर चलते जाना या
अपने घर के पास पहुंचकर प्राण गवां देना

पर बहुत आसान है इनको सिर्फ घटनाएं समझना


औऱ न जाने क्या क्या मुश्किल रहा होगा
औऱ न जाने क्या क्या आगे मुश्किल होगा

पर आसान रहेगा सत्ताधीश के लिए सत्ता बनाये रखना
आसान रहेगा स्वर्णिम भारत का सपना देखते रहना
आसान रहेगा लाशों ढेर पर बैठके अपनी पीठ थपथपाना
आसान रहेगा ये बताना की देश  में सब चंगा है
और ये जो रेंगते बेबस आकृतियों के समाचारहैं
ये तो बस पोलिटिकल फंडा हैं
                   
                                       - सोमाली

Sunday 29 March 2020

अनजाने से जज़्बात

अर्थ नहीं जानती पर
कैसे कहूँ की प्रेम नहीं है

जज़्बातों के सैलाब में डूबती उतराती
हर जज़्बात के आगे बेबस हूँ
विमुख हो जाती हूँ सच से अक्सर
तेरे एहसासों से घबराकर

रूबरू होकर खुद से रोज़
न जाने कैसे खुद से हार जाती हूँ

आगे मुकम्मल जहां है मेरे पर 
मैन चंचल बीते वक़्त को जाता है

नफरत नहीं तो मोहब्बत भी नहीं है
अजीब सी कश्मकश है अधूरे रिश्ते की

साथ कि ख्वाहिश भी है और 
दूरियों की दरकार भी

अधूरेपन में पूर्णता की जुस्तजू है 
और एक बेमतलब सी आस भी

मैं रहूँगी मैं, तुम,तुम ही, मिल कर हम न होंगे
अधूरी सी कहानी का मैं सार लिए बैठी हूँ

अर्थ नहीं जानती इस सबका पर
कैसे कहूँ की प्रेम नहीं है।
        
                    -सोमाली