Sunday 19 June 2011
ख़ामोशी सिर्फ ख़ामोशी नहीं होती
लब जब खामोश होते हैं,तब दिल में खयालो का इक तूफ़ान उठा होता है,
Sunday 29 May 2011
सवाल ???
न जाने कहाँ से जन्म लेते इतने सवाल
न जाने क्यूँ अंतस में उठते हैं इतने सवाल
वक़्त पैदा करता है या हालात जन्म देते हैं सवालो को?
सवाल जो अनसुलझे रह जाते हैं
सवाल जो अपने आपमें कितना कुछ कह जाते हैं
सवाल जिनके कोई जवाब नहीं होते
सवाल जो कचोटते रहते हैं मनं को जागते -सोते
सवाल जिनके जवाब एक नया सवाल खड़ा कर देते हैं
सवाल जो एक छोटी सी बात को बड़ा कर देते हैं
सवाल जो कभी झूठ पर से पर्दा हटा देते हैं
सवाल जो अस्तित्व पर भी प्रश्नचिन्ह लगा देते हैं
सवाल जिनका जवाब जानकर भी हम किसी से जवाब की अपेक्षा करते हैं
सवाल जिनके जवाब अपने अनुसार देकर हम खुद को संतुष्ट करने की कोशिश करते हैं
सवाल जो बस उठ जाते हैं कभी मजहब,कभी नाम पर ,कभी चरित्र तो कभी ईमान पर
सवाल जो असीमित हैं,जिनका दायरा कभी ख़त्म ही नहीं होता
सवाल जो प्रश्नचिन्ह लगा देते हैं हर विश्वास के आगे
सवाल जो सबसे बड़ा है वो ये की कहाँ से आते हैं ये सवाल और क्यूँ इन सवालो का कोई अंत नहीं होता ???????
Wednesday 25 May 2011
आईना
ऐ आईने तू कैसे सच दिखलाता है,
मौन रहकर भी कैसे सब कुछ कह जाता है,
मैं कई मुखोटे पहनकर मिलती हूँ दुनिया से,
कोई मुझे पहचान नहीं पाता है,
बस एक तू ही है जो मेरे अंतर्मन में ले जाकर मुझे,मेरे सच से मिलवाता है
जब मनं में कई बातें लिए,खोजती हूँ एक सच्चा साथी मनं की बात बाँटने को
पर कोई समझ नहीं पाता है,तब हारकर तेरे सामने आती हूँ ,
तू ही मेरी तन्हाई का साथी,मेरा हमराज़ बन जाता है,
बड़ी शिद्दत से आँखों के कोरो में छिपाए कुछ कतरे,ढुलक कर गालों को भिगोते हैं
तब आंसू या पानी में फर्क कर उनमे छिपा मर्म पहचान पाता है,
जो बातें खुद से भी छुपाती हूँ,वो सब तुझसे कह जाती हूँ,
तुझसे की हर बात ,बस रहती है हमारे दरमियाँ कोई और न जान पाता है
तू एक बेजान चीज़ होकर भी,सच्चे साथी सा साथ निभाता है ,
सच्चाई दिखाने की ,चकनाचूर होकर कभी सज़ा भी तू पाता है ,
पर फिर भी तेरे हर टुकड़े में सच का प्रतिबिम्ब ही नज़र आता है ,
ऐ आइने तू कैसे सच दिखलाता है
सोमाली
Sunday 8 May 2011
"माँ " तेरी बहुत याद आती है....
जन्म देकर मुझे ,मेरा जीवन संवारा
सींच कर अपने संस्कारो से मेरा अस्तित्व निखाराजब भी गिरने को हुई ,तूने ही संभाला देकर सहारा
जब भी कठिन हालातो की कड़ी धूप में मैं हार कर बैठी ,
तुने ही अपने आँचल का साया कर फिर से हौंसला दिलाया,
जब भी घिरी मैं दुःख के अंधेरों में,तेरे प्यार की रौशनी ने ही रास्ता दिखाया ,
जब जब रोई मैं ,तेरे आँचल को भी मैंने नम पाया ,
तूने ही तो निश्चल ,निस्वार्थ प्यार करना सिखाया ,
अब तुझसे दूर हूँ ,पर हर दुःख में तू ही याद आती है ,
सो जाती हूँ जब तुझे याद करते करते ,
तब सपनो में आकर प्यार से मेरे बालों को सहलाती है ,
आज मैं जो हूँ तुने ही तो बनाया है
दूर हूँ तुझसे पर फिर भी तेरा आशीष मेरा हमसाया है
जब भी घिरती हूँ दुविधा से,तेरी सीख आज भी मुझे रहा दिखाती है ,
माँ कभी कहा नहीं तुझसे ,पर सच तेरी बहुत याद आती है........
-सोमाली
Thursday 5 May 2011
अजनबी बन जाना............
कितना मुश्किल होता है,
अपनों के लिए अजनबी बन जाना......,
उनकी तकलीफ देखकर भी,
परायों की तरह मुँह मोड़ जाना,
अपनी बेरुखी से दिल में उठी कसक को दबाना,
मुँह फेरकर अपने आंसू छुपाना,
उन्हें देखकर हुई ख़ुशी या उनकी तकलीफ से,
चेहरे पे आई शिकन छुपाकर,
हमें फ़िक्र नहीं उनकी ये जाताना,
दिल में हिलोरे मारते प्यार के तूफ़ान को दबाकर,
झूठी नफरत दिखाना,
झूठी नफरत दिखाना,
पर हालात मजबूर कर देते हैं इतना,
की जरुरी हो जाता है अपनों की खुशियों के खातिर ही,
अपनों के लिए अजनबी बन जाना........
अपनों के लिए अजनबी बन जाना........
-सोमाली
Thursday 28 April 2011
उम्मीद
जानती हूँ में ये भावनाएं,ये प्यार तेरे लिए कुछ भी नहीं
फिर भी हर बार तेरे सामने मन खोलकर रख देती हूँ
तू हर बार यूँ ही हँसी में टाल कर चल देता हैं अपने रास्ते
और मजाक बन कर रह जाती हैं सारी भावनाएं,उमीदें और सपने
टूट कर बिखर जाता है मनं के अन्दर कुछ अनगिनत टुकडो में
और मैं आँखों में आंसू लिए समेटने लगती हूँ इन टुकडो को
इस उम्मीद के सहारे की एक दिन तो आएगा
जब तुझे इन टुकडो में मेरी टूटन का भी दर्द नजर आएगा
और तू अपने हाथों से जोड़कर इन टुकडो को
भर देगा अपने बेइन्तेहाँ प्यार से एक -एक दरार को.......
-सोमाली
Wednesday 27 April 2011
ये रात जो आई है
ये रात जो आई है, साथ अपने एक अजब सा एहसास लायी है
एक ख़याल बार बार दिल से टकराकर,धड़कने बड़ा रहा है,
क्यूँ है दिल मेरा इतना बेचैन ,क्यूँ खो रही हूँ मैं अनजाने ख्यालों में
न जाने किस की तलाश है, ढूंढ़ रही हूँ शायद अपना कोई इन अंजानो मैं,
पल पल गहराती इस रात में हर पल की ये बेचैनी,गहराता ये सन्नाटा और आरज़ू ये अनजानी
न जाने क्यूँ हो गयी इतनी बेबस और मजबूर की आंसुओं की ये बूँदें भी आँखों के दाएरे तोड़ आई है
आज की इस रात में न जाने कैसी ये तन्हाई है,जैसे रूठी मुझसे मेरी ही परछाई है,
ये रात जो आई, है साथ अपने एक अजब सा एहसास लायी है
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