लकीरों से बनी एक तस्वीर,
समेटे होती है न जाने कितने भाव,कितने जज्बात अपने अन्दर
एक लकीर मिटने से बदल जाते हैं, सारे अर्थ और जज्बात,
लकीर से ही होती है शुरुआत होने की साक्षर ,
जब लकीरों को मिलाकर बनता है पहला अक्षर
हाथों की लकीरों में उलझ जाते हैं कितने नसीब
बदल जाते हैं कितनी ही जिंदगियो के समीकरण
इन लकीरों में विश्वास और अविश्वास के कारण
एक लकीर कर देती है टुकड़े उस आँगन के
जो था कभी साँझा संसार,प्यार की चाशनी में पगे थे रिश्ते
सुख-दुःख के थे जहाँ सब भागिदार ,
अब कोई किसी के सुख-दुःख का नहीं साझीदार ,
जैसे एक ही घर रहते हो दो भिन्न परिवार
एक लकीर ने विभाजित कर दिया एक देश को
खीच के सरहद ,कर दिए हिस्से, जमीन के साथ इंसानों के भी,
कर भाई को भाई से जुदा,
बना दिया भगवान को यहाँ इश्वर वहां खुदा
बंटी हुई है धरा समुचि इन्ही लकीरों से सरहदों में
बंधा है संसार जैसे इन्ही लकीरों की हदों में
बेमिसाल सी शक्ति लिए ये लकीरें
बनाती भी है, और मिटाती भी
निर्भर हम पर करता है, की कहाँ खीचनी है यह लकीर
-सोमाली
समेटे होती है न जाने कितने भाव,कितने जज्बात अपने अन्दर
एक लकीर मिटने से बदल जाते हैं, सारे अर्थ और जज्बात,
लकीर से ही होती है शुरुआत होने की साक्षर ,
जब लकीरों को मिलाकर बनता है पहला अक्षर
हाथों की लकीरों में उलझ जाते हैं कितने नसीब
बदल जाते हैं कितनी ही जिंदगियो के समीकरण
इन लकीरों में विश्वास और अविश्वास के कारण
एक लकीर कर देती है टुकड़े उस आँगन के
जो था कभी साँझा संसार,प्यार की चाशनी में पगे थे रिश्ते
सुख-दुःख के थे जहाँ सब भागिदार ,
अब कोई किसी के सुख-दुःख का नहीं साझीदार ,
जैसे एक ही घर रहते हो दो भिन्न परिवार
एक लकीर ने विभाजित कर दिया एक देश को
खीच के सरहद ,कर दिए हिस्से, जमीन के साथ इंसानों के भी,
कर भाई को भाई से जुदा,
बना दिया भगवान को यहाँ इश्वर वहां खुदा
बंटी हुई है धरा समुचि इन्ही लकीरों से सरहदों में
बंधा है संसार जैसे इन्ही लकीरों की हदों में
बेमिसाल सी शक्ति लिए ये लकीरें
बनाती भी है, और मिटाती भी
निर्भर हम पर करता है, की कहाँ खीचनी है यह लकीर
-सोमाली