मात् दिवस आज मना लो
फिर पता नहीं मौका मिलेगा न मिलेगा
माँ
अनमोल बड़ा ही रिश्ता ये अब बस किताबों में मिलेगा
बन इतिहास, किन्ही पन्नो पर सजेगा .....
बस कुछ ही समय में ये शब्द और रिश्ता अद्रश्य हो जायेगा
अब इश्वर भी कभी माँ का रूप लेकर नहीं आएगा
देख यहाँ दुर्दशा बेटियों की वो भी दहेल जायेगा
जहाँ रोज़ तिरसकृत माँ होती है
जहाँ मार दिया जाता है ,एक माँ कोख में जन्म से पहले ही
जहाँ रोज़ उनके बचपन से खिलवाड़ होता है
एक नन्ही सी जान को भी, वेहेशी शिकार बनाते हैं
रोंद कर फूल से बचपन को, कर अट्ठाहस गगन गुंजाते हैं
जहाँ उसकी ज़िन्दगी शुरू होने से पहले ही ख़तम हो जाती है
जहाँ उसकी ज़िन्दगी शुरू होने से पहले ही ख़तम हो जाती है
जहाँ भेदती निगाहों के बीच जीने की वो आदि हो जाती है
जहाँ खुल कर मर्ज़ी से जीने की भी उसको सजा मिलती है
घात लगाये बैठे भेड़िये नोचते हैं बेदर्दी से जिस्म को उसके
और फिर कहीं सडको पर वो नग्न, लहुलुहान पड़ी मिलती है,
तिस पर भी ये समाज जिम्मेदार दुर्दशा का स्वयं उसे ठेहेराता है
सौ इलज़ाम लगा उसे ही ,चरित्र हीन कहा जाता है
जहाँ बेटी को बंदिशों में डरकर रहना सिखाया जाता है
पर बेटो को कभी स्त्री सम्मान और अहिंसा का पाठ नहीं पढ़ाया जाता है
जहाँ पग -पग पर वो अनचाहे स्पर्श झेलती है
जहाँ रोज़ दहेज़ की पीड़ा में आग से खेलती है
जहाँ उसको इंसान नहीं सामान समझा जाता है
उसके विरोध को अपना अपमान समझा जाता है
और चढा दी जाती है बलि उसकी झूठे अहम की तृप्ति के लिए
जहाँ ज़िन्दगी खिलने से पहले ही मुरझा जाती है
वहां इश्वर खुद भी आने से डरेगा ,
फिर क्यूँ भला माँ का सृजन वह करेगा
आज जो बेटी है ,वही तो कल माँ कहलाएगी
पर बेटियां ही नहीं रहेंगी तो माँ कहाँ से आएगी
जब रोज़ युहीं बेटियां बलि चढ़ती रहेंगी
तो माएँ भी मरती रहेंगी ....
- सोमाली