Thursday 26 December 2013

.......अश्क़ों की हमराज़ बस ये रात

रो ले इस रात के वीराने में जितना भी तुझे रोना है


सहला ले जख्मो को अपने लेट कर इस खामोश रात की गोद में

भिगोले आंसुओं से अपने ,रात के दामन को जितना भिगोना है

आँखों पर लगी बंदिशे हटा कर

बह जाने दे दर्द को अपने, तोड़ कर बाँध सारे सब्र के

निकल जाने दे उस चीख को जो दबी है कब से सीने में तेरे

हो ले बेजार तुझे आज जितना होना है

पर याद रख बस आज की ये रात ही तेरी हमदर्द ,हमराज़ है

तो लेकर अपने दिल के तमस,खोकर अंधेरों में हो ले दूर

इस बेदर्द दुनिया से जितना तुझे होना है.……

क्यूंकि फिर सुबह होते ही, कर सशकत खुद को

पकड़ उजालो का हाथ

कल फिर इस दुनिया की भीड़ में ,तुझे हंस कर शामिल होना है



                                                                                            - सोमाली

Sunday 12 May 2013

माँ - अब नहीं मिलेगी






मात् दिवस आज मना लो 
फिर पता नहीं मौका मिलेगा न मिलेगा 





 माँ 
 अनमोल बड़ा ही रिश्ता ये अब बस किताबों में मिलेगा 
बन इतिहास, किन्ही पन्नो पर सजेगा .....
बस कुछ ही समय में ये शब्द और रिश्ता अद्रश्य हो जायेगा 
अब इश्वर भी कभी माँ का रूप लेकर नहीं आएगा 
देख यहाँ दुर्दशा बेटियों की वो भी दहेल  जायेगा 

जहाँ रोज़ तिरसकृत माँ होती है 
जहाँ मार दिया जाता है ,एक माँ कोख में जन्म से पहले ही 

जहाँ रोज़ उनके बचपन से खिलवाड़ होता है 
एक नन्ही सी जान को भी, वेहेशी शिकार बनाते हैं 
रोंद कर फूल से बचपन को, कर अट्ठाहस गगन गुंजाते हैं
जहाँ उसकी ज़िन्दगी शुरू होने से पहले ही ख़तम हो जाती है 
जहाँ भेदती निगाहों के बीच जीने की वो आदि हो जाती  है

जहाँ खुल कर मर्ज़ी से जीने की भी उसको सजा मिलती है 
घात लगाये बैठे भेड़िये नोचते हैं बेदर्दी से जिस्म को उसके 
और फिर कहीं सडको पर वो नग्न, लहुलुहान पड़ी मिलती है,
तिस पर भी ये समाज जिम्मेदार दुर्दशा का स्वयं उसे ठेहेराता है 
सौ इलज़ाम लगा उसे ही ,चरित्र हीन कहा जाता है

जहाँ बेटी को बंदिशों में डरकर रहना सिखाया जाता है 
पर बेटो को कभी स्त्री सम्मान और अहिंसा का पाठ नहीं पढ़ाया जाता है 

जहाँ पग -पग पर वो अनचाहे स्पर्श झेलती है 
जहाँ रोज़ दहेज़ की पीड़ा में आग से खेलती है 
जहाँ उसको इंसान नहीं सामान समझा  जाता है 
उसके विरोध को अपना अपमान समझा जाता है 
और चढा दी जाती है बलि उसकी झूठे अहम की तृप्ति के लिए 
जहाँ ज़िन्दगी खिलने से पहले ही मुरझा जाती है

वहां इश्वर खुद भी आने से डरेगा ,
फिर क्यूँ भला माँ का सृजन वह करेगा 

आज जो बेटी है ,वही तो  कल माँ कहलाएगी 
पर बेटियां ही नहीं रहेंगी तो माँ कहाँ से आएगी 

जब  रोज़ युहीं बेटियां बलि चढ़ती  रहेंगी
तो माएँ भी मरती रहेंगी ....
                                                                                                  

                                                                                                - सोमाली 








Friday 12 April 2013

छिपी सी तड़प -"दर्द प्यार का "












फिर हँस दी मैं और दिल रोया,
जब कहा किसी नेआज की तुम क्या जानो दर्द प्यार का....
बरसने को बेसब्र आँखें झुका कर चली आई मैं 
दिल में फिर तेरा ख़याल लिए ....
फिर जग उठी वो कसक 
जो  शिद्दत से दबा रखी थी दिल के किसी कोने में 
फिर उठ हुआ  खड़ा मेरा कल, न जाने कितने सवाल लिए..... 

क्या कहू तुझे अपना कल या आज ?
ये भी तो इक सवाल ही है ....
है तो कल तू, पर शामिल उतना ही 
मेरे आज में भी है.... 
या कहू की आज और कल के बीच कोई लकीर ही नहीं..
बस कुछ बदला है, तो रिश्ते का रूप
वो भी सिर्फ मेरे लिए 
तेरे लिए तो कुछ बदला ही नहीं....

आज भी याद है मुझे,तेरी कही हर बात
वो अपने दुःख- दर्द बाँटना...
कभी यूहीं कुछ बातों पर हँसना 
यूहीं बातो -बातों में बीती हर रात...
आज भी जेहन गहरे बसी हैं , तेरी सारी यादें...
पर तुझे शायद ही याद हो ,मेरी कोई  बात ....

वो तेरा इजहारे प्यार..... 
और फिर प्यार से खुद तेरा इनकार ..  

इस सच के बाद शायद मैं ही मैं नहीं रही थी....
पर फिर भी याद है मुझे..
तेरी हर वो दलील जो तूने  दी थी....
ये साबित करने को,की साथ छोड़ रहे हो
 मगर फिर भी हमेशा साथ रहोगे...... 

जब टूट चुकी थी मैं ,फिर तुमने कहा था 
चंद महीने ही तो थे,क्या फर्क पड़ता है....
पर वो तुम्हारे  लिए शायद चंद महीने थे
लेकिन मेरे लिए पूरा जीवन......
काश तुम समझ पाते....

पर तुम्हे ही क्यूँ दोष दूँ सारा,
दोषी में भी तो कम नहीं थी....
में ही थी जो थोड़े वक़्त में तुम्हारे प्यार में आकंठ डूब गयी थी...
प्रेम मैंने तुझसे अटूट किया था,ये दोष तेरा न था 
इसीलिए दे आजादी तुझे,सोचा था भूल जाउंगी  ....
 
पर आज भी तुम शमिल हो मेरी जिंदगी में
मगर कुछ इस तरह की 
अब विश्वास नहीं होता तेरी किसी बात पर 
नफरत करना चाहती हूँ,पर कर नहीं पाती...
रिश्ता आज भी अनाम सा है तेरे- मेरे बीच  
और में भी न जाने क्यूँ ये रिश्ता निभाए चली जा रही हूँ 

क्या बताऊँ किसी को .....
जब में खुद नहीं जानती 
मैंने क्या खोया और क्या पाया 
न जाने कितनी बार हिसाब लगाने की कोशिश की 
पर जवाब कुछ न आया.......

बस दबा कर दिल के अन्दर गम को...
हँस कर जीना सीख लिया...
अब कोई कहता भी है की 
तुम क्या जानो दर्द प्यार का .....
दिल के अन्दर फिर कुछ टूट जाता है.....
फिर कसक सी उठती है....
और में हँस कर कहती हूँ 
सच कहते हो मैंने कभी प्यार जो नहीं किया....   
 
                         -सोमाली