Saturday, 6 August 2011

अनखिला अधूरापन

हम क्या सुनाते किसी को अपने दर्द की दास्ताँ
यहाँ तो पहले ही हर कोई अपने गम से ग़मगीन है ,

फिजूल है कोई
ख्वाब बोना इन आँखों में
अब ये सिर्फ एक खुश्क बंजर ज़मीन हैं

क्या आस लगते मदद की किसी से
की भीड़ में खड़ा हर शख्स तमाशबीन है

भूल कर बैठी हूँ सारे जहाँ को तन्हाई में
अब तेरी यादें ही मेरी हमनशीं हैं

इल्म है हमें अपने अधूरेपन का लेकिन फिर भी
कभी तो पूरी होगी ये दास्ताँ, हम मुतमईन हैं

-सोमाली  

17 comments:

  1. bahut hi bahut hi accha likha hai tum isse v aaccha likh sakte ho all da best :)

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  2. Dard , Alfazo mai bakubi utra hai :)
    nice one !

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  3. बहुत खूबसूरत गज़ल ...

    कवाब -- ख्वाब कर लें

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  4. सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए आभार.

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  5. मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाये

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  6. Mitrta divas ki bdhai....
    Bahut hi achi rachna.....
    Jai hind jai bharatMitrta divas ki bdhai....
    Bahut hi achi rachna.....
    Jai hind jai bharat

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  7. सोमाली जी
    नमस्कार !

    भावपूर्ण नज़्म है -
    हम क्या सुनाते किसी को अपने दर्द की दास्तां
    यहां तो पहले ही हर कोई अपने गम से ग़मगीन है



    हार्दिक बधाई के साथ और भी श्रेष्ठ सृजन के लिए शुभकामनाएं !


    मित्रता दिवस की शुभकामनाओ सहित…

    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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  8. बहुत खूबसूरत...

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  9. Achchha likha hai . sdhi lekhani hai

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  10. आशा आवश्यक है
    शुभकामनायें आपको !

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  11. फिजूल है कोई ख्वाब बोना इन आँखों में
    अब ये सिर्फ एक खुश्क बंजर ज़मीन हैं..

    बहुत खूब ! बहुत ख़ूबसूरत गज़ल..

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  12. somali ji
    bahut hi prashanshniy prastuti .
    har panktiyan padh kar sach hi prateet hoti hain

    इल्म है हमें अपने अधूरेपन का लेकिन फिर भी
    कभी तो पूरी होगी ये दास्ताँ, हम मुतमईन हैं
    bahut hi achhi lagi ye panktiyan
    bahut bahut badhai
    poonam

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  13. aap sabhi ka mere utsah vardhan ke liye bahut bahut dhanyavaad aage bhi aap sab ke ashirwaad or margdarshan ki kamna karti hun

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