एक अफसाना ओर ज़िन्दगी का पूरा हुआ
लग रहा फिर कोई अपना छूट
प्यार से सींचे हुए पल्लवित रिश्ते को
एक अनजान भंवरा लूट गया
अजीब सी रवायत है इस माशरे की
पुराने रिश्तों की कब्र पर
खिलते हैं गुल नए रिश्तों के
रूठ जाती हैं बहारें भी इस दर से
और तितलियाँ भी बेवफा हो जाती हैं
बंजर रह जाती है दिल की ज़मीं
किसी तिनके की आस में
पता नही कब फिर हवा का रुख बदले
और लेहला उठे हरियाली फूट कर
इन तिनको से
पर क्या पता ये इंतेज़ार कभी पूरा ही न हो
हर जमीन के नसीब में हरियाली कहां होती है
कुछ जमीने होती है शापित बन जाने को
सेहरा सदा के लिए।
-सोमाली
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