Tuesday, 6 September 2022

बदलते रिश्ते

 एक अफसाना ओर ज़िन्दगी का पूरा हुआ

लग रहा फिर कोई अपना छूट 

प्यार से सींचे हुए पल्लवित रिश्ते को

एक अनजान भंवरा लूट गया


अजीब सी रवायत है  इस माशरे की

पुराने रिश्तों की कब्र पर 

खिलते हैं गुल नए रिश्तों के 

रूठ जाती हैं बहारें भी इस दर से

और तितलियाँ भी बेवफा हो जाती हैं


बंजर रह जाती है दिल की ज़मीं 

किसी तिनके की आस में 

पता नही कब फिर हवा का रुख बदले 

और लेहला उठे हरियाली  फूट कर 

इन तिनको से


पर क्या पता ये इंतेज़ार कभी पूरा ही न हो

हर जमीन के नसीब में हरियाली कहां होती है

कुछ जमीने होती है शापित बन जाने को 

सेहरा सदा के लिए।

                                   -सोमाली

   

No comments:

Post a Comment