आज फिर ए तनहाई लग जा गले ,
के तुझसे लिपटके रोने का बहुत दिल है,
के तुझसे लिपटके रोने का बहुत दिल है,
एक तू ही है हमसाया जिंदगी की मेरी
वरना यहां तो हर रिश्ता ,मेरी रूह का कातिल है
बहुत भटकी एक अदद साथ की तलाश में ,
दुनिया की इस भीड़ में ,
रिश्ते कुछ अपने से बने भी थे ,
जो कुछ दूर संग मेरे चले भी थे ,
नासमझी में चंद लम्हों के रिश्तों से,
जिंदगी की आस लगा बैठी थी ,
हर बार दिल उन्ही ने तोडा
जिन्हे मैं दिल में बसाये बैठी थी ,
हर कोई जज्बातों का मेरे माखौल यूँ उड़ाता रहा
ख्वाहिशों को मेरी आंसूओं में जलाता रहा
कहना बहुत कुछ चाहा,पर किसी ने सुना नहीं
दिल में बसे दर्द को किसी ने कभी गुना नहीं
संवेदनाएं लिए फिरती रही
इस संवेदनहीन संसार में ,
कई बार बिखरकर ,अब समझ आया है
ये दुनिया है सरोकारों की,कौन प्यार समझ पाया है ,
थक गयी फरेबों के यहां से ,
एक न सच्चा रिश्ता पाया है,
यकीं किस पर करूँ अब
की लगता झूठा खुद का भी साया है ,
झाँका जब भी दिल में अपने ,
एक गहरा सन्नाटा ही पाया है ,
थककर फिर आई हूँ पास तेरे ए तनहाई
समेटले मुझे आगोश में अपने ,
हो लेने दे तू जार -जार मुझे बाँहों तेरी ,
बहुत दिनों से इस दिल को सुकून नहीं आया है .....
-सोमाली
सुन्दर और भावप्रणव रचना।
ReplyDeleteधन्यवाद रविकर सर जी…
ReplyDeleteधन्यवाद रूपचन्द्र शास्त्री सर
ReplyDeleteबहुत सुंदर एवं भावपूर्ण रचना.
ReplyDeleteबहुत उम्दा... बधाई....
ReplyDeletethanks, very nice post,
ReplyDeleteZee Talwara
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