लब जब खामोश होते हैं,तब दिल में खयालो का इक तूफ़ान उठा होता है,
खामोश बैठा शख्स,मनं में उलझते खयालो को सुलझाने में जुटा होता है ,
मौन है वो लेकिन अंतर्मन विचलित होता है,
ख़ामोशी को ओढ़े वो दिल ही दिल में चिंतित होता है,
खामोश रहकर न जाने कितनी बातें वो खुद से कर जाता है,
खुद से हँसता,रोता कभी खुद शंशय से भर जाता है,
खामोश वो कुछ पल के लिए दुनिया से दूर निकल जाता है
गहरे कहीं अपने ही मनं में उतर जाता है ,
चलते हुए मनं के गलियारों में न जाने कितने विचारो से टकराता है,
कहीं यादों में उतरता है तो कहीं खुद के सवालो से कतराता है,
ख़ामोशी से यादों में फिर एक बार पिछली जिंदगी जी जाता है
और कभी भविष्य की चिंता में जलता है
खामोश लम्हों में घुलते हुए बुरी यादो में कुछ गलत फैसले ले लेता है
और कभी खामोश लम्हों में लिए फैसलों से दुनिया जीत लेता है
ख़ामोशी सिर्फ ख़ामोशी नहीं होती ख़ामोशी का भी गहन अर्थ होता है
जब खामोश हो इंसान दुनिया के सामने तब वो सिर्फ खुद से रु-ब रु होता है