Wednesday 26 November 2014

"क्यों साथ की आस करता है "


चल अकेला ही तू 
क्यों किसी के साथ की राह तकता है,
ये दुनिया मतलब की है,
हर कोई बस जरुरत  तक ही साथ चलता है ,
हर मोड़ पर यहाँ नए हमसफ़र मिलेंगे,
हमदर्द न बना किसी को यहाँ ,
के दर्द बहुत होगा जब वो रास्ते  बदलता है ,
मत बैठ तू किसी रिश्ते की आस में 
कट  जाती है जिंदगी युही 
एक अदद साथ की तलाश में,
जाने दे जो छोड़ते हैं बीच राह में साथ तेरा 
एहमियत  जब समझी नहीं किसी ने 
फिर  तू  क्यों रिश्तों की दुहाई देकर मचलता है  
कर पत्थर खुद को तू  की 
तूफानों में भी डिगे नहीं  …
चकनाचूर हो जायेगा 
क्यों दिल शीशे का लेकर चलता है,
 बहुत लम्बा है   सफर अभी 
कांटे भी चुभेंगे,सेहरे  भी आएंगे 
कई रास्तों पर पग तेरे फिसल भी जायेंगे 
पर फिर ज़िन्दगी बटोर कर उठ खड़ा होना 
जितनी बार तू फिसलता है ,
चलता चल युहीं तू अपनी राहों पर 
मिल ही जाएगी मंजिल तेरी 
जो तेरी जिंदगी की सफलता है ,
फिर देखना खड़े होकर वहां तू 
कभी किया ही नही मोल तेरा जिन्होंने 
कैसे  उनका  का रुख तेरे लिए बदलता   है  
क्यूंकि है हर जज्बात झूठ यहाँ 
बस सफलता का ही सिक्का चलता है   ....... 


                                                   … सोमाली    

Monday 6 October 2014

फिर तेरी चाह.… ऐ तन्हाई


 आज फिर ए तनहाई लग जा गले ,
 के तुझसे  लिपटके रोने का बहुत दिल है,

 एक  तू ही  है हमसाया जिंदगी की मेरी 
 वरना यहां तो हर रिश्ता ,मेरी रूह का कातिल है   

 बहुत भटकी एक अदद साथ की तलाश में ,
  दुनिया की इस भीड़ में ,  

 रिश्ते कुछ अपने से बने भी  थे ,
  जो कुछ दूर संग मेरे चले भी थे ,

  नासमझी में चंद लम्हों के रिश्तों  से,
  जिंदगी की आस लगा   बैठी थी ,

  हर बार दिल उन्ही ने तोडा 
   जिन्हे मैं दिल में बसाये बैठी थी ,

  हर कोई जज्बातों का  मेरे  माखौल यूँ उड़ाता रहा 
  ख्वाहिशों को मेरी आंसूओं में जलाता रहा 

  कहना  बहुत कुछ चाहा,पर किसी ने सुना नहीं 
  दिल में बसे दर्द को किसी ने  कभी गुना नहीं 

   संवेदनाएं लिए फिरती रही 
   इस संवेदनहीन संसार में ,

  कई बार बिखरकर ,अब समझ आया है 
  ये दुनिया है सरोकारों की,कौन प्यार समझ पाया है ,

  थक गयी फरेबों के यहां से ,
  एक न सच्चा रिश्ता पाया है,

  यकीं किस पर  करूँ अब 
  की लगता झूठा खुद का भी साया है ,

  झाँका जब भी दिल में अपने ,
  एक गहरा सन्नाटा ही पाया है ,

  थककर फिर आई हूँ पास तेरे ए तनहाई 
   समेटले मुझे आगोश में अपने ,

  हो लेने दे तू जार -जार  मुझे बाँहों तेरी ,
  बहुत  दिनों से इस दिल को सुकून नहीं आया है ..... 


                                                               -सोमाली